Gorkha Sasan In Uttarakhand | उत्तराखंड में गोरखा शासन का इतिहास

Gorkha sasan in Uttarakhand उत्तराखंड में गोरखा शासन की शुरुआत 1790 ई० से हुई उत्तराखंड में गोरखा शासन बहुत ही क्रूर व अत्याचार युक्त माना जाता है गोरखा मूलतः नेपाल के थे व नेपाल सरकार द्वारा नियुक्त किया गया गोरखा सूबेदार उत्तराखंड में शासन करते थे History of Uttarakhand in hindi की इस पोस्ट  में हम कुमाँऊ में गोरखा शासन व गढ़वाल में गोरखा शासन के बारे में पढ़ेंगे व साथ ही साथ गोरखाओं की कर प्रणाली व गोरखा शासन प्रणाली के बारे में जानेंगे ।
इस वेबसाइट में आपको Uttarakhand ka itihas in hindi की पूरी जानकारी मिल जाएगी आप अन्य पोस्ट पढ़कर Uttarakhand ka Parichay, Uttarakhand History In Hindi प्राप्त कर सकते हैं जो आपको आने वाली आगामी परीक्षा में बहुत काम आने वाली है।

Gorkha Sasan In Uttarakhand – उत्तराखंड में गोरखा शासन का इतिहास

  • गोरखा नेपाली मूल के थे जिन्हें गोरखा के नाम से जाना जाता है।
  • ये अत्यंत लड़ाकू थे व इनकी सत्ता सैनिक शासन पर आधारित थी।
  • नेपाल में 24 रियासत थी जिन्हें चौबीसी के नाम से जाना जाता है।
  • नेपाल के प्रथम राजा पृथ्वीनारायण शाह(1743-1775)
  • पृथ्वीपति नारायण शाह के बाद प्रताप सिंह(1775-78) राजा बना।
  • 1778-1800 रणबहादुर शाह।
कुमाँऊ में गोरखा शासन(1790-1815)
  • गोरखाओं ने कुमाँऊ पर 1790 ई० में आक्रमण किया।
  • इस समय गोरखा राजा राण बहादुर शाह(स्वामी निर्गुणानन्द) थे।
  • गोरखाओं ने हर्षदेव जोशी के कहने पर कुमाँऊ पर आक्रमण किया।
  • गोरखा शासन का नेतृत्व इस समय अमरसिंह थापा, जगजीत पांडे, सुरसिंह थापा आदि सैनिकों ने किया
  • इस समय कुमाँऊ में चंद राजा महेंद्र चंद का शासन था।
  • 1790 ई० में हवालबग मैदान में कुमाँऊ व गोरखा सेना आमने सामने थी इस युद्ध मे कुमाँऊ शासक महेंद्र सहन्द मारा गया।
  • इस प्रकार 1790 ई० में कुमाँऊ पर गोरखा शासन स्थपित हो गया।

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हर्षदेव जोशी-
  • हर्षदेव जोशी चंपावत के राजा दीप चंद के दीवान थे।
  • हर्षदेव जोशी ने गोरखाओं को कुमाऊँ पर आक्रमण करने के लिये निमंत्रण दिया।
  • हर्षदेव जोशी ने अंग्रेजों को उत्तराखंड पर शासन करने का प्रेरित किया इसलिये कई इतिहासकार इनके बारे में अलग अलग राय देते हैं।
  • राहुल साकर्त्यांनन ने हर्षदेव जोशी को विभीषण की उपाधि दी।
  • एटकिंसन ने हर्षदेव जोशी को स्वार्थी व देशद्रोही कहा।
  • हर्षदेव जोशी को कुमाऊँ का चाणक्य व कुमाँऊ का शिवाजी कहा जाता है।
  • हर्षदेव जोशी को राज्य निर्माता(King maker) की उपाधि भी दी गयी है।
कुमाँऊ में 1790-1815 तक के गोरखा सूबेदार-
  • उत्तराखंड पर नेपाल के राजा के प्रतिनिधि शासन करते थे जिन्हें सूबेदार या सुब्बा कहते थे।
  • कुमाऊँ का प्रथम सूबेदार-जोगामल शाह(1791-92)
  • कुमाँऊ का द्वितीय सूबेदार- काजी नरसिंह(1793
  • काजी नरसिंह के शासन काल मे मंगल की रात घटनाक्रम हुआ।
  • कुमाऊँ का तृतीय सूबेदार-अजब सिंह थापा।
  • रुद्रवीरसिंह-धौंकल सिंह-गोरेश्वर-ऋतुराज।
  • बमशाह चोतरिया(भीम शाह)।
  • बमशाह गढ़वाल व कुमाँऊ का अंतिम नेपाली सुब्बा था।

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गढ़वाल पर गोरखा शासन(1804-1815)
  • 1791ई० में गढ़वाल पर प्रथम गोरखा युद्ध(लंगुरगढ़ युद्ध) हुआ।
  • 1803 ई० में गढ़वाल पर  द्वितीय गोरखा युद्ध बाड़हाट युद्ध(उत्तरकाशी) में हुआ।
  • गढ़वाल व गोरखा सेना के बीच तीसरा युद्ध चमुआ(चम्बा ) में हुआ।
  • 14 मई 1804ई० को खुड़बुड़ा नामक मैदान(देहरादून) में गोरखा सेना व गढ़वाल सेना फिर एक बार आमने सामने थी इस युद्ध मे गढ़वाल शासक प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हो गये और इस युद्ध के पश्चात सम्पूर्ण गढ़वाल व कुमाँऊ पर गोरखा शासन स्थापित हो गया।
  • गोरखाओं के गढ़वाल पर अधिकार के समय नेपाल का राजा गीवार्ण युद्ध विक्रम शाह था।
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गढ़वाल के गोरखा सूबेदार-

  • गढ़वाल का पहला प्रशासक या सुब्बा- अमरसिंह थापा(1804)।
  • अमरसिंह थापा की नियुक्ति रणबहादुर शाह ने की।
  • अमरसिंह थापा को नेपाल सरकार ने काजी की उपाधि प्रदान की।
  • गंगोत्री स्थित गंगा माता मंदिर की स्थापना अमरसिंह थापा ने की।

द्वितीय सूबेदार- रणजोर थापा(1804-1805)
मोलाराम ने रणजोर थाप को दानवीर कर्ण की उपाधि दी।
रणजोर थापा ने विचारी(जज) व अविचारी(अधिशासक) पदों का सृजन किया।

तृतीय सूबेदार हस्तिदल चोतरिया(1805-1808)-
किसानों के लिये तकावी रिम दिया व लगान दर कम की

चतुर्थ सूबेदार भैरो थापा(1808-1811)-
विलासी प्रवर्ति व अत्याचारी शासक

काजी बहादुर भण्डारी(1811-12)

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गोरखा शासन प्रणाली व कर प्रणाली-
  • गोरखाओं की सत्ता सैनिक शासन पर आधारित थी।
  • गोरखा सेना दो प्रकार की थी- स्थायी व अस्थायी।
  • स्थायी सेना को जागचा(जगरिया) व अस्थायी सेना को ढाकरिया(ढाकचा) कहते हैं।
  • गोरखा सेना का प्रमुख हथियार- खूंखरी।
  • गोरखाओं ने उर्वरता की दृष्टि से भूमि को 5 भागों में बांटा-  1.अबल 2.दम 3.सोम 4.चाहर 5.सुखवादी
  • गोरखाओं द्वारा दी गयी भूमि दस्तूर कहलाती थी।
  • गोरखा सैनिकों द्वारा मनमाने ढंग से कर वसूलने की प्रकिया – बलि(बालि)
  • गोरखाओं के शासन काल मे मुकदमों का कार्य जज(विचारी) करता था।
  • गोरखाओं ने पहली अदालत अल्मोड़ा में स्थापित की।
  • गोरखा शासन में गवाह को हरिवंश की कसम दिलवाई जाती थी।
  • ट्रेल के अनुसार अपराध होने पर गोरखा नाक या हाथ काटते थे।
  • गोरखा शासन में ब्राह्मणो के दण्ड चुटिया काटना, जनेऊ उतारना व देश निकाला देना था।
  • गोरखा लोग शिल्पकारों के क्या कहते थे – कामी
  • गोरखा लोग सुनारों को कहते थे – सुनवार
  • गोरखा लोग दासों को कहते थे – कठुआ
  • गोरखा लोग नाई को कहते थे – नो
गोरखाओं की कर प्रणाली –
  • गोरखाओं की आय का प्रमुख स्रोत – भू-राजस्व
  • 1.टीका भेंट कर – विवाह, शुभ अवसरों पर लिया जाने वाला कर
  • 2.सोन्य फागुन कर – उत्सवों के समय लिया जाने वाला कर
  • 3.पुंगड़ी कर – एक प्रकार का भूमि कर
  • 4.तानकर – कपड़ो पर लगने वाला कर
  • 5.मरो कर – पुत्रहीन ब्यक्ति से लिया जाने वाला कर
  • 6.बहता कर – छिपाई गयी सम्पति पर लिया जाने वाला कर
  • 7.मो कर – प्रति परिवार से लिया जाने वाला कर
  • 8.अधनी दफ्ती कर – खस जमीदारों से लिया जाने वाला कर
  • 9.मांगा कर – युद्ध के समय दिया जाने वाला कर
  • 10.मिझारी कर – जगरियों व ब्राह्मणो से लिया जाने वाला कर
  • 11.रहता कर – गाँव छोड़कर भागने वाला कर
  • 12.दोनिया कर – पहाड़ी पशुचारकों से लगने वाला कर
  • 13.कुसही कर – ब्राह्मणो पर जमीन हथियाने पर लगने वाला कर
  • 14.तिमारी कर – सूबेदारों को दिया जाने वाला कर
  • 15.सायर कर- सीमा कर
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