उत्तराखंड वन आंदोलन – उत्तराखण्ड का अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण है, यहाँ के लोग वनों अथवा जंगलों पर निर्भर रहते है। जैसे चारा लाना, लकड़ियाँ लाना आदि। यहाँ के लोगों ने समय समय पर वनों की सुरक्षा व सरक्षण एवं वनों के कटाव को रोकने के लिए कई आन्दोलन किये। जिनके बारे मे इस आर्टिक्ल मे चर्चा की जाएगी ।
उत्तराखंड वन बचाओ आंदोलन |
उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन Forest Movement Of Uttarakhand
1. तिलाड़ी/रंवाई वन आंदोलन
2.चिपको आंदोलन
3.1977 का वन आंदोलन
4.डूंगी पैंतोली आंदोलन
5.पाणी राखो आंदोलन
6.रक्षासूत्र आंदोलन
7.झपटो छीनो आंदोलन
8.मैती आंदोलन
- 1927-28
में टिहरी राज्य सरकार ने एक नई वन नीति लागू की जिसमें वनों के लिये
तरह-तरह के कानून बनाये गये जंगलो का सीमाकरण किया गया व इस सीमा के अंदर
जानवरों व मनुष्यों का घुसना वर्जित था - लोगों से वन अधिकार छीन
लिये गये व रंवाई क्षेत्र में आने जाने वाले रास्ते, पशुओं को बांधने वाले
छाने भी वन सिमा के अंतर्गत आ गये ।
अब जनता ने इस वन नीति का विरोध करना शुरू किया व राजा से इस संबंध में बात
की की हमारे पशु कहाँ जाएंगे तो राजा ने जवाब दिया”ढंगार में फेंक दो”। - वन नीति पर राज्य सरकार की अनदेखी को देखते हुए 30 मई 1930 को यमुना के तट
पर तिलाड़ी के मैदान में वन नीति का विरोध करने के लिये भीड़ इकट्ठा होती है
इस निहत्थी भीड़ पर टिहरी के दीवान चक्रधर जुयाल गोली चलाने का आदेश देते
हैं। - इस घटना को टिहरी का जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है व चक्रधर जुयाल को टिहरी का जनरल डायर कहा जाता है।
सर्वप्रथम 1964ई० में चंडी प्रसाद जी ने दशोली ग्राम(गोपेश्वर) में स्वराज संघ की स्थापना की
1972 में चंडी प्रसाद भट्ट द्वारा महिला मंगल दल की स्थापना की गयी।
चिपको आंदोलन की नींव:-
चिपको आंदोलन की शुरुआत अप्रैल 1973 में चमोली जनपद से हुई।
गौरा देवी (Chipko Women of India)-
जन्म-1924
मृत्यु- 1991
- 1972 में गौरा देवी रैणी ग्राम महिला मंगल दल की अध्यक्ष बनी।
- 26
मार्च 1974 ई० में वन विभाग की टीम व ठेकेदार पेड़ो की कटाई के लिये रैणी
गांव पहुंचे लेकिन रैणी गांव की महिलाएँ गौरा देवी के नेतृत्व में जंगल मे
पहुंच गयी व पेड़ो पर चिपक गयी - गौरा देवी के नेतृत्व में रैणी गांव
की महिलाओ द्वारा पेड़ो को बचाने हेतु उठाया गया यह साहसिक कदम इतिहास में
अमर हो गया व चिपको आंदोलन के नाम से जाना गया। - 1977 में चिपको आन्दोलनकारी महिलाओं ने एक नारा दिया-
- 1980 में सुंदर लाल बहुगुणा जी ने चिपको आंदोलन के सम्बंध में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी से मुलाकात की।
- चिपको आंदोलन से प्रभावित होकर इंदिरा गांधी जी ने 1980 में 15 वर्षों के लिये हिमालयी क्षेत्रों में वनों की कटाई पर रोक लगा दी।
- चिपको आंदोलन के लिये चमोली के चंडी प्रसाद भट्ट जी को 1982 में रैमन मैग्सेसे पुरस्कार(एशिया का नोबेल) से सम्मानित किया गया।
- 1987 में चिपको आंदोलन को The right livelihood award से सम्मानित किया गया ।
- 1986 में महिला मंगल दल की 30 महिलाओं को इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र से सम्मानित किया गया।
- 1986 में विश्वेश्वर दत्त सकलानी जी (वृक्ष मित्र) को इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
3.1977 का वन आंदोलन (Forest Movement of 1977)-
यह आंदोलन नैनीताल से शुरू हुआ।
4.डूंगी पैंतोली आंदोलन (Dungi-Pantoli Movement)-
शुरुआत- चमोली
यह आंदोलन बांज के जंगल काटे जाने के विरोध में हुआ।
सूत्रधार:- सचिदानंद भारती
- यह आंदोलन 80 के दशक में उफरैखाल गांव(पोड़ी) के युवाओं द्वारा पानी की कमी को दूर करने के लिये चलाया गया।
- सचिदानंद भारती जी ने दूधातोली लोक विकास संस्थान का गठन कर वन की कटाई के विरोध में जनजागरण चलाया व वनों को अंधाधुंध कटान रुकवाया।
- शुरुआत:- 1994(भिलंगना टिहरी गढ़वाल)
- भिलंग घाटी के लोगों द्वारा वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांधकर वृक्षों की रक्षा का संकल्प लिया गया।
- इस आंदोलन का नारा:-
- यह आंदोलन 21 जून 1998 को शुरू हुआ
- रैणी,
लाता गांव की जनता ने वनों पर परंपरागत हक के किये व नंदा देवी राष्ट्रीय
उद्यान का प्रबंधन ग्रामीणों को सौंपने के लिये लाता गांव में धरना
प्रदर्शन किया। - 15 जुलाई के गांव के लोग अपने पालतू जानवरों के साथ नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान में अपने पालतू जानवरों के साथ घुस गये।
- सूत्रधार– कल्याण सिंह रावत
- शुरुआत– 1994-95 में
- इस
आंदोलन के तहत आज भी विवाह समारोह के दौरान वर-वधु द्वारा पौधा रोपने व
उसके बाद मायके पक्ष के लोगों द्वारा उसकी देखभाल की जाती है।
मुझे उम्मीद है कि उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। उत्तराखंड के बारे में ऐसे ही Uttarakhand Gk In Hindi की आपको बहुत सी पोस्ट JardhariClasses.Com में देखने को मिल जयेगी जिन्हें आप पढ़ सकते हैं