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गांधी जी की उत्तराखंड यात्रा:-
- 1915 में अप्रैल माह में गांधी कुम्भ मेले के अवसर पर हरिद्वार की
यात्रा पर आये यह गांधी जी का उत्तराखंड में प्रथम आगमन था इस यात्रा के
दौरान गांधी जी ऋषिकेश व स्वर्गाश्रम भी गये - 1916 में गांधी जी दुबारा उत्तराखंड की यात्रा पर आये व हरिद्वार में गुरूकुल कांगड़ी विश्विद्यालय में ब्याख्यान दिया
- 1916 में गांधी जी ने देहरादून की यात्रा की
- 1 अगस्त 1920 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की शुरुआत की जिसका उत्तराखंड में अत्यधिक प्रभाव पड़ा
- कुमाँऊ परिषद ने अपने चौथे अधिवेशन में असहयोग को पूर्ण समर्थन दिया व असहयोग लाने की घोषणा की
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गांधी जी की कुमाऊँ यात्रा(14 जून-2 जुलाई 1929):-
- गांधी जी की कुमाऊँ की यह प्रथम यात्रा थी व उत्तराखंड की तीसरी यात्रा थी
- इस यात्रा के दौरान गांधी जी ने हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, कौसानी आदि क्षेत्रों का भ्रमण किया
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कौसानी:-
- कौसानी बागेश्वर के गरुड़ जिले का एक गांव है जो कि कोसी नदी व गोमती नदी के बीच बसा हुआ है
- गांधी जी ने कौसानी को “भारत का स्विट्जरलैंड कहा”
- गांधी जी ने कौसानी में 12 दिन के प्रवास में “अनाशक्ति योग नामक गीता”की भूमिका लिखी
- गांधी जी ने अपनी पुस्तक”यंग इंडियन” में कौसानी के सौंदर्य का विवरण किया है
🔵16-24 अक्टूबर 1929 में गांधी जी ने गढ़वाल की यात्रा की व देहरादून,मसूरी आदि क्षेत्रों का भ्रमण किया
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जनवरी 1930 को पूरे देश में अनेकों जगह पर तिरंगा फहराया गया भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस दिन भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया उत्तराखंड
में भी टिहरी रियासत को छोड़कर पूरे उत्तराखंड में इस दिन तिरंगा फहराया गया
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डांडी यात्रा(12 मार्च-6 अप्रैल 1930)-
डांडी
यात्रा में गांधी जी के साथ 78 सत्याग्रहियों में तीन ब्यक्ति(ज्योतिराम
कांडपाल, भैरव दत्त जोशी व गोरखवीर खड़क बहादुर) उत्तराखंड से थे
गांधी आश्रम की स्थापना(1937)-
1937
में शांतिलाल त्रिवेदी ने सोमेश्वर(अल्मोड़ा) के चनोदा में गांधी आश्रम की
स्थापना की यह स्थान स्वन्त्रता आंदोलन व चेतना का प्रमुख केंद्र बन गया था
अल्मोड़ा
के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने कुमाँऊ के तत्कालीन कमिश्नर ऐ०डव्लू०इवटसन
को लिखा था कि” जब तक यह आश्रम चालू है इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन चलाना
मुश्किल है”
2 सितम्बर 1942 को कमिश्नर ने गांधी आश्रम पर ताला लगवा दिया था
भारत छोड़ो आंदोलन में उत्तराखंड की सक्रियता:-
भारत
छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 1942 में शुरू हुई जिसमें गांधी जी ने करो या मरो
का नारा दिया पूरा देश इस आंदोलन में कूद पड़ा ऐसे में उत्तराखंड भी कहाँ
रुकने वाला था उत्तराखंड में भी जगह जगह प्रदर्शन व हड़ताले हुई
देघाट गोली कांड:-
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अगस्त 1942 को अल्मोड़ा में में विनोला(विनोद) नदी के समीप देघाट में एक
शांति पूर्वक सभा का आयोजन किया गया था इस सभा को चारों और से पुलिस ने घेर
लिया व एक सत्याग्रही खुशाल सिंह मनराल को हिरासत में ले लिया
जब
सत्याग्रहियों को इस बात का पता चला तो वे खुशाल सिंह मनराल को छुड़ाने की
मांग करने लगे अनियन्त्रित भीड़ पर काबू पाने के लिये पुलिस ने भीड़ पर गोली
चलवा दी
इस देघाट गोली कांड में हीरा मणि गडोला, हरिकृष्ण उप्रेत, बद्रीदत्त कांडपाल शाहीद हो गये
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धामधो(सालम) गोली काण्ड:-
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अगस्त 1942 को सेना व जनता के बीच झड़प हुई जिसमें पत्थर व गोलियों चली इस
संघर्ष में दो प्रमूख नेता”टिका सिंह व नरसिंह धानक शाहिद हो गये
सल्ट गोली काण्ड(1942):-
5
सितम्बर 1942 को सल्ट क्षेत्र के खुमाड़ गांव में एक जनसभा का आयोजन किया
गया सभी आन्दोलनकारी जुलूस निकलते हुए सभा मे पहुंचे ब्रिटिश अधिकारी जॉनसन
ने भीड़ को हटने का आदेश दिया लेकिन सभा पर जॉनसन की धमकी का कोई भी असर
नहीं पड़ा
ब्रिटिश सेना ने भीड़ पर गोली चलवा दी इस गोली कांड में गंगाराम तथा खीमादेव नामक दो सगे भाई शहीद हो गये
खुमाड़ गांव में 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी:-
पेशावर कांड(23 अप्रैल 1930)-
गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों ने चंद्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वन्त्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया
गाड़ोदिया स्टोर डकैती कांड(6 जुलाई 1930)-
दिल्ली में हुए इस डकैती कांड में उत्तराखंड से भवानी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी
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