Surkanda Devi Temple
सुरकण्डा देवी मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के टिहरी जिले में स्थित जौनपुर
के सुरकट पर्वत पर धनोल्टी और कानाताल के बीच में घने जगलों से घिरा हुआ
पहाड़ की सबसे ऊची चोटी पर स्थित माँ दुर्गा को समर्पित एक भव्य मंदिर है। जो कि नो देवियों के रूप में से एक है। यह भव्य मन्दिर 51 शक्तिपीठों में से एक है।
सुरकंडा देवी मंदिर |
इस पवित्र और सुन्दर मंदिर की उत्तर दिशा में श्रद्धालुओं को आकर्षित करने वाला हिमालय का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
सुरकण्डा
देवी मंदिर परिसर से सामने स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ गगोत्री यमनोत्री
चारों धामों की पहाड़िया नजर आती है जो इस पवित्र स्थान को और अधिक सुन्दर
बनती है।
कहा जाता है कि माँ का मायका चम्बा के जड़धारगॉव में है और यही लोग मन्दिर की पूरी व्यवस्था करते हैं तथा विभिन्न अवसरों पर माँ की पूजा अर्चना किया करते हैं।
इस पवित्र और भव्य मंदिर का उल्लेख केदारखंड और स्कन्द पुराण में भी मिलता है इस मंदिर में देवी काली की मूर्ती भी स्थापित है।
गंगा दशहरे और नवरात्रों में माँ के द्वार पर आने से सभी श्रद्धालुओं की
झोली भर जाती है, यही कारण है की यहाँ नवरात्रों और गंगा दशहरे के मौके पर
हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है और इसी कारण यहाँ गंगा दशहरे के पावन
त्योहार पर प्रतीवर्ष एक विशाल मेला लगता है।
माता सुरकण्डा देवी से जुडी एक मुख्य कहानी Surkanda Devi Temple Story
यह कहानी है सतयुग की जब ब्रह्मा पुत्र प्रजापति राजा दक्ष ने एक भव्य
यज्ञ का आयोजन किया इस महायज्ञ में उन्होंने देवदिदेव महादेव और आदि शक्ति
माँ सती के आलावा अन्य सभी देवी -देवताओं को आमंत्रित किया था।
सभी देवी -देवताओं को यज्ञ स्थान कनखल में जाते देख सती
का मन भी बहल उठा, उनके दिल में वहाँ जाने की तरंग जाग गयी और वह भोलेनाथ
से यह मंत्रणा करने लगी कि वह तो मेरा स्वयं का घर है, हमे वहाँ जाने के
लिये किसी निमंत्रण की क्या आवश्यकता हम तो वहाँ बिना निमंत्रण के भी जा
सकते हैं।
परन्तु भगवान शंकर ने माँ सती को
यह कहकर, कि बिना निमंत्रण के वहाँ जाना हमारे लिए उचित नहीं होगा मैं
तुम्हें वहाँ जाने की अनुमति नहीं दे सकता।
और स्वयं ध्यान-मग्न हो गये परन्तु देवी सती पित्र मोह में अपने परमेश्वर
के मना करने पर भी यज्ञ स्थान कनखल को चल बसी। जहाँ उनकी माता देवी प्रसूति
के अतिरिक्त उनका स्वागत किसी ने नहीं किया।
इसी के साथ वहाँ भगवान शिव तथा देवी सती के अतिरिक्त सभी देवी –
देवताओं का स्थान था जब सती ने अपने पिता से महादेव का स्थान न होने का
कारण पूछा तो उनके पिता ने उन्हें तथा उनके पति को अपमानजनक शब्द सुना डाले
और देवी सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और वह यज्ञ कुंड में कूद गई तथा स्वयं की ऊर्जा से ही खुद को भस्म कर दिया।
महादेव को जब यह बात पता चली तो उन्होंने रूद्र रूप धारण कर लिया था और माँ का पार्थिव शरीर त्रिशूल में उठाकर ब्रह्मांड में भृमण करने लगे। जिससे पूरी सृष्टि में प्रलय जैसी स्थिति आ गई।
शक्तिपीठों का निर्माण – Surkanda Devi Temple History In Hindi
सभी देवी – देवता भगवान शिव को शांत करने के लिये सृष्टि पालक भगवान
विष्णु के पास गये तथा इसी दौरान सचिदानन्द भगवान विष्णु ने माता सती के
पार्थिव शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में विभाजित कर दिया था।
जो
– जो भाग जिस स्थान पर गिरे वे शक्तिपीठ कहलाये जिसमें देवी सती का सिर इस
पवित्र स्थान पर गिरा इसलिए इस जगह को सुरकंडा कहा जाता है तथा इस मंदिर
का नाम श्री सुरकंडा देवी मंदिर पड़ा जिसका उल्लेख स्कन्द पुराण तथा
केदारखंड में भी मिलता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार कहा
जाता है कि एक बार राक्षशों ने देवताओं को हराकर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया
था ऐसे में इंद्र सहित सभी देवता देवी सुरकंडा के मंदिर में जाकर उनकी
आराधना की थी कि उन्हें उनका राज्य वापस मिल जाये और उनकी यह मनोकामना
पूर्ण हुयी फलस्वरूप उन्होंने राक्षशों को हराकर स्वर्ग पर आधिपत्य स्थापित
कर लिया इसलिये इस मंदिर को मनोकामना सिद्धि का मंदिर भी कहा जाता है।
Frequently Asked Questions (FAQs)
सुरकण्डा आने के लिए सबसे बेहतर समय गर्मियों का है आप मई से अगस्त तक आ
सकते हैं इसके अलावा मन्दिर के द्वार हमेशा खुला रहते हैं आप कभी भी आ
सकते हैं।
यदि आपको बर्फ में घूमना पसंद है तो आप उस समय भी आ सकते हैं।
सुरकण्डा माँ के कपाट सुबह 5 बजे से शाम 7 बजे तक खुले रहते हैं। आप इस बीच दर्शन करके आशीर्वाद ले सकते हैं।
यदि आप देहरादून से सुरकंडा आना चाहते है तो आप मसूरी होते हुए आ सकते हैं ये रास्ता आपको सरल पड़ेगा।
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