Kuli Begar In Uttarakhand – उत्तराखंड में कुली बेगार प्रथा ब्रिटिश शासन द्वारा उत्तराखण्ड के लोगों पर एक जुल्म था Uttarakhand Gk In Hindi की इस पोस्ट मे आपको Kuli Begar Pratha In Uttarakhand के बारे में पूरी जानकारी मिलने वाली है कि किस प्रकार कुली बेगार प्रथा के लिए आन्दोलन हुये और किस प्रकार इसका अंत किया गया ।
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कुली बेगार प्रथा Kuli Begar In Uttarakhand – उत्तराखंड में बेगार प्रथा ब्रिटिश शासन से पहले से चलती आ रही थी लेकिन ब्रिटिशों ने बेगार प्रथा के माध्यम से यहाँ के लोगों का अनेक प्रकार से शोषण करना शुरू किया बेगार प्रथा के अंतर्गत यहाँ के लोग ब्रिटिश अधिकारियों का सामान ढोते ब्रिटिश अधिकारियों के लिये भोजन सामग्री मुहैया करवाते थे जबकि ब्रिटिश इसके बदले यहाँ की जनता को कुछ भी नही देते थे
Kuli Begar Pratha In Uttarakhand |
बेगार प्रथा तीन प्रकार की थी-
1.कुली बेगार :– जब कोई ब्रिटिश अधिकारी एक गांव से दूसरे गांव भ्रमण पर जाता तो वहाँ के लोगों से बिना बेगार(पैसे) दिये सामान एक गांव से दूसरे गांव पहुंचाते थे
2.कुली उतार:- जब गांव के लोग सड़कों पर उतरकर कुली का काम करते थे इसे कुली उतार कहा गया
3.कुली बर्दायश:- जिस गांव में ब्रिटिश अधिकारी रात को विश्राम करते थे उस गांव के लोग ब्रिटिश अधिकारी के लिये खाद्य सामग्री की ब्यवस्था करते थे
कुली बेगार आन्दोलन :-
- 1822ई० में कुमाँऊ के तत्कालीन कमिश्नर ट्रेल ने खच्चर सेना की स्थापना की जिससे सामान की ढुलाई खच्चरों से की जाये
- 1895ई० अल्मोड़ा अखबार द्वारा एक कथन प्रकाशित किया गया”आज हमारे शरीर के प्रत्येक अंग पर कर लग गया है”
- 1903ई० को लार्ड कर्जन कुमाँऊ व गढ़वाल की यात्रा पर आये व गिवार्ण के गोरी दत्त बिष्ट व महंत नारायण दास ने उनसे मुलाकात की व कुली बेगार व जंगलात क़ानून पर चर्चा की
- 1904ई०इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेगार प्रथा को अवैध घोषित किया
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Kuli Begar In Uttarakhand – उत्तराखंड में कुली बेगार प्रथा
कुली एजेंसी(1908-1924ई०):-
- कुली एजेंसी का पूरा नाम:-ट्रांसपोर्ट एंड सप्लाई कॉपरेटिव एसोसिएशन
- कुली एजेंसी का विचार सर्वप्रथम गिरिजा दत्त नैथानी ने रखा
- 1908ई० में जोध सिंह नेगी ने कूली एजेंसी की स्थापना की व इसका मुख्यालय पौड़ी था
- 1912 ई० में लैंसडोन में कुली एजेंसी की स्थापना हुई
- 1913 में रुद्रप्रयाग में कुली एजेंसी की स्थापना हुई
- 14 जुलाई 1913 ई० अल्मोड़ा अखबार के संपादक बद्रीदत्त पांडे ने कुली बेगार व जंगलात विरोधी कानून के विरोध में एक लेख छापा जिसमे बताया कि जंगलात कानून हमारी आर्थिक गतिविधियों पर असर करता है लेकिन बेगार प्रथा हमें मानसिक रूप से पीड़ित करती है
- 1920ई० में कुमाँऊ परिषद के चौथे अधिवेशन में हरगोविंद पंत की अध्यक्षता में कुली बेगार प्रथा को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा गया
- 1920ई० में बद्रीदत्त पांडे ने कोलकाता जाकर गांधी जी से मुलाकात की व कुली बेगार प्रथा से अवगत कराया
- 1 जनवरी 1921ई० को कत्यूर के चामी गांव के हरु मंदिर में 400 लोगों ने एक साथ बेगार न देने की शपथ ली
Kuli Begar In Uttarakhand – Uttarakhand Gk In Hindi
कुली बेगार प्रथा का अंत:-
- 10 जनवरी 1921 को बागेश्वर में कुली बेगार के विरोध में भीड़ जमा होने लग गयी थी
- अल्मोड़ा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर “डायबल” ने भीड़ पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया
- 13-13 जनवरी 1921 को 40 हजार लोगों ने बद्रीदत्त पांडे,हरगोविंद पंत व चिरंजीलाल के नेतृत्व में बागनाथ मंदिर की पूजा अर्चना की व उसके बाद जुलूस निकाला
- जुलूस के सबसे आगे झंडे पर लिखा था- “कुली बेगार बंद करो”
- अल्मोड़ा के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर”डायबल” ने भीड़ पर गोली दागनी चाही लेकिन भीड़ अधिक देखकर व डर गया
- इसके बाद सरयू मैदान पर एक सभा होती है इस सभा को संबोधित कर बद्रीदत्त पांडे ने कहा”पवित्र सरयू का जल व बागनाथ मंदिर को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करो कि आज से कुली उतार, कुली बेगार, कुली बर्दाशय नहीं दोगे
- 13-14 जनवरी 1921 को बागेश्वर में सरयू नदी के किनारे उत्तरायणी मेले में बद्रीदत्त पांडे,हरगोविंद पंत व चिरंजीलाल के नेतृत्व में लगभग 40 हजार आंदोलनकारियों ने बेगार न देने का संकल्प लिया
- सभी मुखियों व ग्राम प्रधानों ने बेगार सम्बन्धी रजिस्टर सरयू में बहा दिये
- इसी आंदोलन के पश्चात बद्रीदत्त पांडे को कुमाँऊ केशरी की उपाधि दी गयी
मुझे उम्मीद है कि Kuli Begar In Uttarakhand | Uttarakhand Gk In Hindi – Kuli Begar Pratha In Uttarakhand के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन के जैसे ही Uttarakhand Gk In Hindi की आपको बहुत सी पोस्ट JardhariClasses.Com में देखने को मिल जयेगी जिन्हें आप पढ़ सकते हैं।
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