उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand | Uttarakhand Gk In Hindi

उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand कि शुरुआत 1857 की भारत की स्वतंत्रता क्रांति के साथ हुई आखिर उत्तराखण्ड भी तो भारत का हिस्सा है फिर ये कैसे छूट जाता  Freedom Movement In UttarakhandUttarakhand Gk In Hindi की इस पोस्ट के माध्यम से आज आपको उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में जानकारी मिलेगी जो आपको आगामी आने वाली उत्तराखंड प्रतियोगी परीक्षा में बेहत उपयोगी साबित होगी।

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 उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand

1857 की क्रांति-
कुमाँऊ कमिश्नर – हैनरी रैमजे(1856-84)
उत्तराखंड में 1857 की क्रांति की शुरुआत रूहेलखंड(बरेली) से हुई
रूहेलखंड का नवाब – खान बहादुर खान
17 सितंबर 1857 ई० को कालेखां के नेतृत्व में लगभग एक हजार क्रांतिकारियों ने हल्द्वानी पर कब्जा कर लिया
18 सितंबर 1857 ई० मैक्सवेल व चैपमैन ने हल्द्वानी को मुक्त करा दिया
कालू मेहरा(उत्तराखंड का प्रथम स्वंतत्रता संग्राम सेनानी)-
  • कालू मेहरा चंपावत जिले के बिसुंग(लोहाघाट) गांव का निवासी था।
  • अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने कालू मेहरा को एक पत्र लिखा जिसका उद्देश्य कुमाँऊ में अंग्रेजों के विरुद्ध क्रांति फैलाना था
  • कालू मेहरा ने कुमाँऊ में एक गुप्त संगठन(क्रांतिवीर) बनाया व अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया
  • गुप्त संगठन क्रांतिवीर में कालू मेहरा का साथ आनंद सिंह फड़तयाल, बिशन सिंह करायत आदि ने दिया
  • कालू मेहरा को उत्तराखंड का प्रथम स्वंतत्रता संग्राम सेनानी कहा जाता है
  • कुमाँऊ में क्रांति का प्रभाव बढ़ता देखकर कमिश्नर रैमजे ने कुमाँऊ में मार्शल लॉ लागू किया
  • 1857 की क्रांति के समय गढ़वाल का डिप्टी कमिश्नर -बैकेट
1857 की क्रांति का असर राज्य में बहुत कम था-
  • 1.अन्याय पूर्ण गोरखा शासन की अपेक्षा अंग्रेजी शासन लोगों को उदारवादी व सुधारवादी लग रहा था
  • 2.कुमाँऊ कमिश्नर रैमजे एक कुशल व उदारवादी शासक था
  • 3.गढ़वाल नरेश का अंग्रेजों के प्रति भक्ति भाव
  • 4.राज्य में शिक्षा ,संचार, तथा यातायात के साधनों की कमी थी
डिबेटिंग क्लब व अल्मोड़ा अखबार-
बुद्धि वल्लभ पंत-
  • 1870 ई० में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की गयी
  • 1871 ई० में अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन किया गया
  • डिबेटिंग क्लब व अल्मोड़ा अखबार की स्थापना बुद्धि वल्लभ पंत ने की
  • अल्मोड़ा अखबार के पहले संपादक बुद्धि वल्लभ पंत थे
  • बुद्धि वल्लभ पंत के बाद सदानन्द सनवाल , मंशी इम्तियाज अली , जीवानन्द जोशी , विष्णु दत्त जोशी सम्पादक रहे लेकिन यह अखबार सरकार समर्थक ही रहा
  • 1913 ई० में बद्रीदत्त पांडे ने अल्मोड़ा अखबार के संपादक बने
  • बद्रीदत्त पांडे ने अल्मोड़ा अखबार को साप्ताहिक किया व स्वंतत्रता आंदोलन से इसे जोड़ा
  • 14 जुलाई 1913 ई० को अल्मोड़ा अखबार ने कुली बेगार प्रथा व जंगलात नीति के विरोध में लेख छाप दिया
  • बद्रीदत्त पाण्डे के जंगलात विरोधी लेखों से तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर लोमश ने बद्रीदत्त पांडे को धमकी दी कि वह अल्मोड़ा अखबार के प्रकाशन को बंद कर देगा
  • 1918 ई० में बद्रीदत्त पांडे ने “भालुसाही”शीर्षक प्रकाशित किया
  • अप्रैल 1918 ई० में एक घटना घटी जिसके बाद अल्मोड़ा अखबार पर प्रतिबंध लग गया
  • अल्मोड़ा अखबार के प्रतिबंध लगने पर गढ़वाल समाचार पत्र ने छापा”एक गोली के तीन शिकार- मुर्गी कुली व अल्मोड़ा अखबार

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    1818 ई० में अल्मोड़ा अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया गया 
    अल्मोड़ा अखबार पर प्रतिबंध लगने के बाद बद्रीदत्त पांडे ने शक्ति नामक समाचार पत्र का प्रकाशन किया

     Freedom Movement In Uttarakhand | Uttarakhand Gk In Hindi

    याद रखें-
    1.1886ई० में कांग्रेस के द्वितीय अधिवेशन कलकत्ता अधिवेशन में कुमाँऊ क्षेत्र के ज्वाला दत्त जोशी सहित दो नेताओं ने भाग लिया
    2.1901 में गढ़वाल यूनियन की स्थापना
    3.1903 ई० में पंडित गोविंद वल्लभ पंत ने हैपी क्लब की स्थापना की
    कुमाँऊ परिषद(1916-26)
    1912 ई० में अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना हुई
    उत्तराखंड में होमरूल लीग की स्थापना-
    • 1914 ई० को अल्मोड़ा में बद्रीदत्त पांडे ,मोहन जोशी, लाला चिरंजीलाल के नेतृत्व में होमरूल लीग की स्थापना की गयी
    • 1916 ई० में बालगंगाधर तिलक ने पुणे में होमरूल लीग की स्थापना की व मद्रास में एनी बेसेंट ने की
    • 1916ई० में गोविंद वल्लभ पंत ,हरगोविंद पंत, बद्रीदत्त पांडे आदि के प्रयासों से कुमाँऊ परिषद की स्थापना हुई
    स्थापना-1916ई०
    नैनीताल के मझेड़ा ग्राम में 
    अध्यक्षता-रायबहादुर नारायण दत्त छिपाल
    1916-26 तक कुमाँऊ परिषद के सात अधिवेशन हुए
    उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन - Freedom Movement In Uttarakhand | Uttarakhand Gk In Hindi
    उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand

    कुमाँऊ परिषद के अधिवेशन-
    प्रथम अधिवेशन – सितंबर 1917
    अध्यक्ष – जयदत्त जोशी(अवकाश प्राप्त डिप्टी कलेक्टर)
    स्थान- अल्मोड़ा
    उद्देश्य- कुमाँऊ परिषद का प्रचार-प्रसार
    नोट-इस अधिवेशन में अल्मोड़ा अखबार के संपादक बद्रीदत्त पांडे ने कविता सुनाई
    राजा वहीं रहेंगे श्रीमान जार्ज पंचम
    प्रत्येक श्वेत चर्मा राजा न बन सकेगा.”
    द्वितीय अधिवेशन-24-25 दिसबंर 1918
    अध्यक्ष- रायबहादुर तारादत्त गैरोला
    स्थान- हल्द्वानी
    लक्ष्य – कुली बेगार से मुक्ति और जंगलात के अधिकार जनता को लौटाने सम्बन्धी प्रस्ताव रखे गये

    उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand

    तीसरा अधिवेशन(22-24 अक्टूबर 1919)-
    स्थान-कोटद्वार
    अध्यक्ष- राय बहादुर बदरी दत्त जोशी 
    लक्ष्य – कुली बेगार, जंगलात अधिकार व हिन्दू मुस्लिम एकता
    इस अधिवेशन में 100 से अधिक नेता अमृतसर कांग्रेस में शामिल होने चले गये
    चतुर्थ अधिवेशन(21-23 दिसम्बर 1920)-
    स्थान – काशीपुर
    अध्यक्ष – हरगोविंद पंत
    लक्ष्य- असहयोग लाया गया
    पांचवा अधिवेशन (1923)-
    स्थान – टनकपुर
    अध्यक्ष – बद्रीदत्त पांडे
    लक्ष्य -भूमि बंदोबस्त व वन नीति पर चर्चा
    अंतिम अधिवेशन(1926)-
    स्थान – गनियतोली(रानीखेत)
    अध्यक्ष – मुकंदी लाल
    1926 ई० में कुमाँऊ परिषद का विलय कांग्रेस में हो गया था
    याद रखें – 
    1.कुमाँऊ परिषद ने कुली बेगार, कुली उतार, जंगलात कानून,भूमि बंदोबस्त प्रणाली आदि स्थानीय समस्याओं के साथ स्वंतत्रता आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई
    2.1918ई० में बैरिस्टर मुकंदी लाल व अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने गढ़वाल कांग्रेस कमेटी की स्थापना की
    3.1921 ई० कुली बेगार प्रथा का अंत हो गया

    उत्तराखंड स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी की भूमिका व भारत छोड़ो आंदोलन में उत्तराखंड की सक्रियता:-


    गांधी जी की उत्तराखंड यात्रा:-

    • 1915 में अप्रैल माह में गांधी कुम्भ मेले के अवसर पर हरिद्वार की
      यात्रा पर आये यह गांधी जी का उत्तराखंड में प्रथम आगमन था इस यात्रा के
      दौरान गांधी जी ऋषिकेश व स्वर्गाश्रम भी गये
    • 1916 में गांधी जी दुबारा उत्तराखंड की यात्रा पर आये व हरिद्वार में गुरूकुल कांगड़ी विश्विद्यालय में ब्याख्यान दिया
    • 1916 में गांधी जी ने देहरादून की यात्रा की
    • 1 अगस्त 1920 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की शुरुआत की जिसका उत्तराखंड में अत्यधिक प्रभाव पड़ा
    • कुमाँऊ परिषद ने अपने चौथे अधिवेशन में असहयोग को पूर्ण समर्थन दिया व असहयोग लाने की घोषणा की



    गांधी जी की कुमाऊँ यात्रा(14 जून-2 जुलाई 1929):-

    • गांधी जी की कुमाऊँ की यह प्रथम यात्रा थी व उत्तराखंड की तीसरी यात्रा थी
    • इस यात्रा के दौरान गांधी जी ने हल्द्वानी, अल्मोड़ा, बागेश्वर, कौसानी आदि क्षेत्रों का भ्रमण किया

    कौसानी:-

    • कौसानी बागेश्वर के गरुड़ जिले का एक गांव है जो कि कोसी नदी व गोमती नदी के बीच बसा हुआ है
    • गांधी जी ने कौसानी को “भारत का स्विट्जरलैंड कहा”
    • गांधी जी ने कौसानी में 12 दिन के प्रवास में “अनाशक्ति योग नामक गीता”की भूमिका लिखी
    • गांधी जी ने अपनी पुस्तक”यंग इंडियन” में कौसानी के सौंदर्य का विवरण किया है

    🔵16-24 अक्टूबर 1929 में गांधी जी ने गढ़वाल की यात्रा की व देहरादून,मसूरी आदि क्षेत्रों का भ्रमण किया

    ⚫26
    जनवरी 1930 को पूरे देश में अनेकों जगह पर तिरंगा फहराया गया भारतीय
    राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस दिन भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया उत्तराखंड
    में भी टिहरी रियासत को छोड़कर पूरे उत्तराखंड में इस दिन तिरंगा फहराया गया

    डांडी यात्रा(12 मार्च-6 अप्रैल 1930)-
    डांडी
    यात्रा में गांधी जी के साथ 78 सत्याग्रहियों में तीन ब्यक्ति(ज्योतिराम
    कांडपाल, भैरव दत्त जोशी व गोरखवीर खड़क बहादुर) उत्तराखंड से थे

    गांधी आश्रम की स्थापना(1937)-
    1937
    में शांतिलाल त्रिवेदी ने सोमेश्वर(अल्मोड़ा) के चनोदा में गांधी आश्रम की
    स्थापना की यह स्थान स्वन्त्रता आंदोलन व चेतना का प्रमुख केंद्र बन गया था
    अल्मोड़ा
    के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ने कुमाँऊ के तत्कालीन कमिश्नर ऐ०डव्लू०इवटसन
    को लिखा था कि” जब तक यह आश्रम चालू है इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन चलाना
    मुश्किल है”
    2 सितम्बर 1942 को कमिश्नर ने गांधी आश्रम पर ताला लगवा दिया था

    भारत छोड़ो आंदोलन में उत्तराखंड की सक्रियता:-
    भारत
    छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 1942 में शुरू हुई जिसमें गांधी जी ने करो या मरो
    का नारा दिया पूरा देश इस आंदोलन में कूद पड़ा ऐसे में उत्तराखंड भी कहाँ
    रुकने वाला था उत्तराखंड में भी जगह जगह प्रदर्शन व हड़ताले हुई

    देघाट गोली कांड:-
    19
    अगस्त 1942 को अल्मोड़ा में में विनोला(विनोद) नदी के समीप देघाट में एक
    शांति पूर्वक सभा का आयोजन किया गया था इस सभा को चारों और से पुलिस ने घेर
    लिया व एक सत्याग्रही खुशाल सिंह मनराल को हिरासत में ले लिया
    जब
    सत्याग्रहियों को इस बात का पता चला तो वे खुशाल सिंह मनराल को छुड़ाने की
    मांग करने लगे अनियन्त्रित भीड़ पर काबू पाने के लिये पुलिस ने भीड़ पर गोली
    चलवा दी
    इस देघाट गोली कांड में हीरा मणि गडोला, हरिकृष्ण उप्रेत, बद्रीदत्त कांडपाल शाहीद हो  गये

    धामधो(सालम) गोली काण्ड:- 
    25
    अगस्त 1942 को सेना व जनता के बीच झड़प हुई जिसमें पत्थर व गोलियों चली इस
    संघर्ष में दो प्रमूख नेता”टिका सिंह व नरसिंह धानक शाहिद हो गये

    सल्ट गोली काण्ड(1942):-
    5
    सितम्बर 1942 को सल्ट क्षेत्र के खुमाड़ गांव में एक जनसभा का आयोजन किया
    गया सभी आन्दोलनकारी जुलूस निकलते हुए सभा मे पहुंचे ब्रिटिश अधिकारी जॉनसन
    ने भीड़ को हटने का आदेश दिया लेकिन सभा पर जॉनसन की धमकी का कोई भी असर
    नहीं पड़ा
    ब्रिटिश सेना ने भीड़ पर गोली चलवा दी इस गोली कांड में गंगाराम तथा खीमादेव नामक दो सगे भाई शहीद हो गये
    खुमाड़ गांव में 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है

    अन्य महत्वपूर्ण जानकारी:-
    पेशावर कांड(23 अप्रैल 1930)-
    गढ़वाल राइफल्स के सैनिकों ने चंद्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वन्त्रता सेनानियों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया

    गाड़ोदिया स्टोर डकैती कांड(6 जुलाई 1930)-
    दिल्ली में हुए इस डकैती कांड में उत्तराखंड से भवानी सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका थी

    मुझे उम्मीद है कि उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन – Freedom Movement In Uttarakhand | Uttarakhand Gk In Hindi के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। उत्तराखंड में स्वतंत्रता आंदोलन के जैसे ही Uttarakhand Gk In Hindi की आपको बहुत सी पोस्ट JardhariClasses.Com में देखने को मिल जयेगी जिन्हें आप पढ़ सकते हैं

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