उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां Major Tribes Of Uttarakhand – उत्तराखण्ड अपनी विभिन्नताओं और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है । यहाँ पर 5 प्रकार की जनजातियां पाई जाती है थारू जनजाति, जौनसारी, भोटिया जनजाति, बोक्सा जनजाति, राजी जनजाति । इस पोस्ट में इन जनजातियों के रहन – सहन, आवास, वेश भूषा, सामाजिक ब्यवस्था आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां (Major Tribes Of Uttarakhand)
थारू जनजाति उत्तराखंड व कुमाऊँ का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है
निवास-
थारू जनजाति उधमसिंह नगर के खटीमा, नानकमत्ता, सितारगंज, किच्छा आदि क्षेत्रों में निवास करती है।
उत्पति-
कुछ इतिहासकारों के अनुसार ये राजस्थान के थार मरुस्थल से आकर यहां बसे जबकि कुछ अन्य इतिहासकारों के मतानुसार किरात वंश से इनकी उत्पति मानी जाती है।
शारीरिक गठन- ये मंगोल प्रजाति से मिलते जुलते हैं कद छोटा, मुख चौड़ा व समतल नासिके वाले होते हैं।
भाषा– मिश्रित पहाड़ी, अवधी, नेपाली आदि
आवास– इनके मकान लड़की ,पत्तों व नरकुल के बने होते हैं व दीवारों पर चित्रकारी होती है।
वेषभूषा-
- पुरूष- धोती, अंगा, कुरता,टोपी, साफा पहनते हैं व लम्बी चोटी रखते हैं
- महिलाएं- लहंगा, चोली, काली ओढ़नी, बूटेदार कुर्ता, आदि
- थारू जनजाति की महिला व पुरूष शरीर पर गुदना गुदवाते हैं।
सामजिक ब्यवस्था-
- इनमें मातृसत्तात्मक सयुंक्त व एकाकी परिवारिक प्रथा पायी जाती है।
- थारू जनजाति में महिलाओं को पुरुषों की अपेक्षा उच्च स्थान प्राप्त है।
- परिवार का मुखिया घर का सबसे बड़ा ब्यक्ति होता है।
- थारू जनजाति कई गोत्रों में विभाजित है- बड़वायक, रावत, वृतियां, महतो , डहैत, आदि
- इनमें बड़वायक गोत्र सबसे उच्च माना जाता है।
विवाह प्रथा-
- इनमें बदला विवाह प्रथा(बहनों का आदान प्रदान) का प्रचलन था।
- थारू जनजाति में अब मुख्यतः तीन काठी विवाह प्रथा पायी जाती है
- थारू जनजाति में विवाह की कुछ प्रमुख रस्में-
- पक्की पौढ़ी– विवाह तय करने की प्रथा
- अपना-पराया – विवाह से पहले सगाई रस्म
- बात कट्ठी- विवाह की तिथि निश्चित करना
- गौना चाला रस्म– लड़की का स्थायी रूप से अपने पति के घर जाना।
- इनमें विधवा विवाह प्रथा भी प्रचलित है।
लठभरवा भोज- यदि किसी लड़की का चाला(गौना) न आया हो व उसका पति मर जाये तो लड़की का पिता उसे अन्य घर में विवाह कराके बिरादरी को एक भोज कराता है जिसे लठभरवा भोज कहा जाता है।
धर्म-
थारू जनजाति हिन्दू धर्म को मानती है।
ये पछावन काली, नगरयाई देवी ज़ भूमिया देवता, कारोदेव, रावत आदि देवी देवताओं को पूजते हैं
उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां |
त्योहार-
- इनके प्रमुख त्योहार होली, दशहरा, माघ की खिचड़ी, बजहर आदि हैं।
- दीपावली को ये शोक पर्व के रूप में मनाते हैं
- होली फाल्गुन पूर्णिमा में आठ दिनों तक मनाया जाता है जिसमें स्त्री- पुरूष खिचड़ी नृत्य करते हैं।
अर्थव्यवस्था- कृषि, पशुपालन व आखेट पर आधारित है।
जौनसारी जनजाति राज्य की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति समुदाय है व गढ़वाल का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है।
उत्पति-
- इनकी उत्पति इंडो आर्यन परिवार से हुई।
- ये मंगोल प्रजाति के मिश्रित जनजाति है
- जौनसारी जनजाति के लोग अपने को पांडवो का वंशज मानते हैं।
निवास-
- दून व भाभर क्षेत्र जिसमें दून का चकराता, कालसी, लाखामण्डल टिहरी का जौनपुर क्षेत्र व उत्तरकाशी का परग नेकान क्षेत्र आता है।
- देहरादून का कालसी, चकराता व ल्युनी क्षेत्र को जौनसार-बाबर क्षेत्र कहते हैं
- 95% जौनसारी जनजाति देहरादून में निवास करती है।
भाषा- मुख्य भाषा जौनसारी लेकिन बाबर क्षेत्र में बाबरी भाषा बोली जाती है।
वेशभूषा/पहनावा-
- पुरूष- पुरुष सर्दियों में ऊनी कोट,ऊनी पजामा(झगोली) व ऊनी टोपी(डिगुबा) पहनते हैं व गर्मियों में कोट, सूती टोपी, पायजामा पहनते हैं
- महिलाएं- गर्मियो में कुर्ती पजामा(झगा), सूती घाघरा व चोली(चोल्टी) पहनते हैं व सर्दियों में ऊनी घाघरा, कुर्ता, व एक बड़ा रुमाल(ढांट)
आवास– घर लकड़ी व पत्थर के बने होते हैं
उपजातियां-
जौनसारी जनजाति की निम्न उपजातियां है-
- .खसास- ब्राह्मण व राजपूत
- .हरिजन खसास- डोम, कोली, मोची, कोल्टा
- .कारीगर- लोहार, सोनार, बागजी, बढ़ई
समाजिक ब्यवस्था-
इनमें पितृसत्तात्मक सयुंक्त परिवार प्रथा पायी जाती है।
परिवार का मुखिया घर का सबसे बड़ा पुरूष होता है
विवाह प्रथा-
- विवाह के पूर्व लड़की को ध्यन्ति व विवाहोपरांत रयान्ति कहा जाता है।
- इनमें पहले बहुपति विवाह प्रथा का प्रचलन था जो कि समाप्त हो चुकी है।
- इनके समाज मे कन्या पक्ष को उच्च माना जाता है।
धर्म-
- ये हिन्दू धर्म को मानते हैं व महाशु(महाशिव), बोठा, पवासी, चोलदा, देवी देवताओं की पूजा करते हैं
- महासू देवता इनके प्रमुख देवता हैं कुछ लोग महासू देवता को विष्णु का 6वं अवतार भी मानते हैं
- इनका प्रमुख तीर्थ स्थल हनोला है।
- इनके मन्दिर लकड़ी व पत्थर के बने होते हैं।
सांस्कृतिक गतिविधयां:-
प्रमुख त्योहार-
- दशहरा– पंचाई,पांचों या पांयता
- दीपावली- दियाई
- बैशाखी– विस्सू
- जन्माष्टमी- अठोई
- नुणाई, माघत्योहार, जागड़ा इनके प्रमुख त्योहार हैं।
- जागड़ा महासू देवता का त्योहार है।
- दीपावली इनका सबसे विशेष पर्व है जिसे ये राष्ट्रीय दीपावली के एक माह बाद मनाते हैं।
- दीपावली में ये भीमल लकड़ी का होला जलाते हैं व पांडवो व महासू देवता के गीत गाते हैं।
- होला को खेत में ले जाकर भयलो खेला जाता है।
- दीपावली के दूसरे दिन को भीरुडी कहा जाता है इस दिन पुरूष पतेबाजी नृत्य करते हैं।
प्रमुख मेले(गनयात)-
1.चोलिथात मेला- यह मेला 3 मई को वीर केसरी चंद के बलिदान दिवस पर मनाया जाता है।
2.बिस्सू मेला– यह मेला बैसाखी में लगता है व ठाणा डांडा, चोरानी मेला, नागपात, आदि स्थानों पर लगता है।
3.मछमोण मेला- इस मेले में केवल पुरूष भाग लेते हैं व नदी में तिमूर(तेजबल झाड़ी) का पाउडर डालकर मछलियों के बेहोश कर पकड़ते हैं।
4.जतरियाड़ो मोण- यह मेला 25-26 सालों में एक बार लगता है।
प्रमुख नृत्य:-
राँसों नृत्य, तांदी नृत्य, हारूला नृत्य(परात नृत्य), ठुमकिया नृत्य, घुमसु, झेला, पतेबाजी, रास-रासो, मंडवड़ा, सराई, जंगबाजी नृत्य आदि
अर्थव्यवस्था– कृषि एवं पशुपालन
राजनीति ब्यवस्था-
खुमरी समिति- एक गांव में पहले खुमरी समिति हुआ करती थी जिसका मुखिया सयाणा हुआ करता था।
खत समिति- खुमरी समिति के ऊपर खत समिति होती थी जिसका मुखिया खत सयाणा होता था।
अब इस जनजाति में भी ग्राम पंचायतें हैं।
उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां (Major Tribes Of Uttarakhand)
उत्तराखंड की भोटिया जनजाति एक अर्धघुमन्तू जनजाति है ।
उत्पति-
इनकी उत्पति मंगोल प्रजाति से हुई व ये अपने को किरात वंशीय खस राजपूत मानते हैं।
निवास-
चमोली, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, अल्मोड़ा जिलों के उत्तरी भागों में ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
यह जनजाति महाहिमालय की सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है।
आवास-
ग्रीष्मकालीन आवास– ग्रीष्म ऋतु में ये 2000-3000 मीटर ऊंचाई वाले स्थानों में जहां चारागाह की सुविधा हो में आवास बनाकर रहते हैं।
शीतकालीन आवास– शीत ऋतु में ये घाटियों में अपने शीतकालीन आवास(गुण्डा या मुनसा) में लौट आते हैं।
वेशभूषा-
कद छोटा, चेहरा गोल, सिर बड़ा, आंख छोटी, नाक चपटी
पहनावा-
पुरुष-
- घुटनों तक का कोट(रंगा), ऊनी पजामा(गैजू या खगचसी) टोपी(चुंगठी या चुकल), ऊनी जूता(बांखे)
स्त्रियां-
- पूरी बांह का वस्त्र (च्युमाला)
- आधी बांह का वस्त्र (च्युं)
- टोपीनुमा वस्त्र (च्युंकला)
- कमर में बांधने वाला वस्त्र (ज्युख्य)
उपजातियां-
भोटिया जनजाति की विभिन्न उपजातियां निम्न जिलों में पायी जाती है-
चमोली– मारक्षा,तोलच्छा उपजाति
उत्तरकाशी- जाड़ भोटिया
पिथौरागढ़- जौहारी, शौका उपजाति
सामाजिक व्यवस्था-
भोटिया जनजाति में पितृसत्तात्मक व्यवस्था पायी जाती है।
विवाह प्रथा-
- इनके समाज मे रंग-बंग(युवा ग्रह) प्रथा का प्रचलन था।
- इनमें एक पत्नी प्रथा का प्रचलन है लेकिन कहीं कहीं में भावज-देवर विवाह, गन्धर्व विवाह भी देखने को मिलता है।
- विवाह के अवसर पर हाथों में रुमाल लेकर पोंणा नृत्य किया जाता है।
धर्म- अधिकांश भोटिया जनजाति के लोग हिन्दू धर्म जो मानते है लेकिन कुछ लोगों ने बोध धर्म अपना लिया है।
देवी देवतायें– भूम्याल देवता, नंदादेवी , दुर्गा, कैलाशपर्वत, ग्वाला, हाथी पर्वत आदि
सांस्कृतिक गतिविधियां-
उत्सव– भोटिया जनजाति में कंडाली नामक उत्सव प्रमुख है जो प्रत्येक 12 वर्ष बाद मनाया जाता है।
लोकगीत- बाज्यू, तिमली, तुबेरा
वाद्ययंत्र- हुड़का
अर्थव्यवस्था- कृषि, पशुपालन, ब्यापार आदि।
उत्पति-
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार इनके पूर्वजों को मराठों द्वारा भगाया गया व वे इस क्षेत्र में आकर बस गये।
- कुछ इतिहासकार मानते हैं कि मुगलों ने जब चितौड़गढ़ पर आक्रमण किया तो वहां के राजपूत व उनके अनुचर वहां से भागकर इस क्षेत्र में बस गये।
- बोक्सा जनजाति अपने को पंवार राजपूत मानते हैं।
निवास-
बोक्सा जनजाति सर्वप्रथम 16वीं शताब्दी में बनबसा(चम्पावत) में आकर बसे थे।
बोक्सा जनजाति उत्तराखंड के तराई-भाभर क्षेत्र में निम्न क्षेत्रों में वास करती है-
उधमसिंह नगर– काशीपुर, बाजपुर,
नैनीताल– रामनगर
पोड़ी– दुगड्डा
देहरादून- डोईवाला, विकासनगर
बोक्सा जनजाति के लोग सर्वाधिक उधमसिंह नगर व नैनीताल में वास करते हैं।
नैनीताल व उधमसिंह नगर के बोक्सा बहुल क्षेत्रों को बुकसाड़ कहा जाता है।
शारीरिक रचना-
कद व आंखे छोटी, चेहरा चौड़ा, होंठ पतले, नाक चपटी ज़ पलकें भारी
भाषा– भावरी , कुमयां, रच भैंसी बोली।
पहनावा-
पुरुष– धोती, कुर्ता, सदरी , पगड़ी
महिलाएं- लहंगा, चोली, ओढ़नी,
सामाजिक ब्यवस्था-
- परिवार पितृसत्तात्मक होता है।
- समाज में स्त्रियों की स्थित उच्च है।
- इनमें एक विवाह व बहु विवाह प्रथा प्रचलित थी लेकिन अब बहु विवाह प्रथा समाप्त हो चुकी है।
- बुक्सा जनजती निम्न गोत्रों में विभाजित है- यदुवंशी, राजवंशी ज़ पंवारवंशी, तनवार, परतजा आदि
धर्म-
- ये हिन्दू धर्म को मानते हैं।
- प्रमुख देवी-देवता- महादेव, काली दुर्गा, लक्ष्मी, राम-लक्ष्मण,
- स्थानीय देवी देवता- ज्वाल्पादेवी, साकरिया देवता,हुल्का देवी, खेड़ी देवी।
ये कल्पित आत्माओं (बुज्जा) की पूजा भी करते हैं।
त्योहार-
होली, दीपावली ज़ चैती ज़ नवरात्रि, नोबि, गोठरे,
(चैती इनका प्रमुख त्योहार व मेला है।)
अर्थव्यवस्था- कृषि, पशुपालन,।
राजी जनजाति राज्य की न्यूनतम आबादी वाली जनजाति है।
उत्पति-
राजी जनजाति आग्नेयवंशीय कोल किरात जातियों के वंशज माने जाते हैं जो प्राचीन काल मे पूर्व से मध्य नेपाल तक वास करते थे
निवास-
- राजी जनजाति मुख्यतः पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला, डांडिहाट, कनालीछीनी विकासखंड में चंपावत व नैनीताल के कुछ गांवों में निवास करती है।
- 66% राजी जनजाति पिथौरागढ़ जनपद में पायी जाती है ।
- राजी जनजाति उत्तराखंड की एक ऐसी जनजाति है जो अभी भी जंगलो में वास करती हैं।
- राजी जनजाति अब धीरे धीरे जंगलो से बाहर आकर झोपड़ियों में रहने लगे हैं अपने आवास को ये रोत्युड़ा कहते हैं।
वेशभूषा-
कद छोटा, मुख चपटा, होंठ बाहर व घुमावदार होते हैं।
पहनावा-
पुरूष- धोती, अंगरखा, पगड़ी, व चोटी रखते हैं
महिलाएं- ओढ़नी, लहंगा, चोली
भाषा- ये मुंडा भाषा बोलते हैं जिसमें स्थानीय भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। बाह्य संपर्क हेतु कुमाऊँ भाषा का प्रयोग किया जाता है ।
(नोट- राजी जनजाति को बनरोत, बनराउत, बनरावत, जंगल का राजा आदि नामों से जाना जाता है।)
सामाजिक ब्यवस्था-
विवाह-
- इनमें बाल विवाह प्रथा प्रचलित है।
- विवाह के पूर्व सांगजांगी व पिण्ठा संस्कार सम्पन होता है।
- इनमे पलायन विवाह का भी प्रचलन है।
धर्म-
- ये हिन्दू धर्म को मानते हैं।
- मृतकों को गाड़ने व जलाने की पृथा है।
त्योहार-
कारक(कर्क) व मकारा(मकर) संक्राति इनके दो प्रमुख त्योहार हैं।
नृत्य- गोले में होकर(थडिया नृत्य जैसे) नृत्य करते हैं।
अर्थव्यवस्था-
ये काष्ठ कला (लकड़ियों के सामान) में निपुण होते हैं
ये मूक या अदृश्य विनिमय द्वारा ब्यापार करते थे।
मुझे उम्मीद है कि उत्तराखंड की प्रमुख जनजातियां के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। उत्तराखंड के बारे में ऐसे ही Uttarakhand Gk In Hindi की आपको बहुत सी पोस्ट JardhariClasses.Com में देखने को मिल जयेगी जिन्हें आप पढ़ सकते हैं।