Dhari Devi Temple Uttarakhand
माता धारी देवी का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के श्रीनगर गढ़वाल में स्थित एक भव्य मंदिर है । यह मंदिर काली माता को समर्पित है इसे उत्तराखंड की संरक्षक एवं पालकी देवी के रूप में माना जाता है। इस मंदिर में देवी की मूर्ति का सिर्फ ऊपरी भाग सिर स्थित है एवं निचला भाग कालीमठ में स्थित माँ मैठाणा नाम से प्रसिद्ध है।
Dhari Devi Temple |
अब यह मंदिर डैम के बीच में स्थित है और चारों और से पर्वत घटियों से घिरा एक मनोहर स्थान पर बसा है। माँ धारी देवी के बारे में एक कहानी प्रचलित है जिससे आपको जानना चाहिए।
Dhari Devi Mandir Story
माता धारी देवी 7 भाइयों की इकलौती बहन थी। माता धारी देवी अपने
सात भाइयों से अत्यंत प्रेम करती थी ,वह स्वयं उनके लिए अनेक प्रकार के
खाने के व्यंजन बनाती थी और उनकी अत्यंत सेवा करती थी यह कहानी तब की है
जब माँ धारी देवी केवल सात साल की थी । परन्तु जब उनके भाइयों को यह पता
चला कि उनकी इकलोती बहन के ग्रह उनके लिए खराब हैं तो उनके भाई उनसे नफरत
करने लगे ।
वैसे तो माता धारी देवी के सातों भाई माँ
धारी देवी से बचपन से ही नफरत करते थे ,क्योंकि माँ धारी देवी का रंग बचपन
से ही सांवला था ।
परन्तु माँ धारी देवी अपने सात भाइयों को ही अपना
सब कुछ मानती थीं क्योंकि इनके माता – पिता के जल्दी गुजर जाने के कारण
धारी देवी का पालन – पोसण अपने भाइयों के हाथों से ही हुआ था और उनके लिए
अपने भाई ही सब कुछ थे ।
धीरे धीरे समय बीतता गया और धारी
माँ के भाइयों की माँ के प्रति नफरत बढ़ती गयी, परन्तु एक समय ऐसा आया कि
माँ के पाँच भाइयों की मोत हो गयी । और केवल दो शादी – शुदा भाई ही बचे थे
और इन दो भाई की परेशानी और बढ़ती गयी क्योंकि इन दो भाइयों को ऐसा लगा कि
कंही हमारे पाँच भाइयो की मोत हमारे इस इकलोती बहन के हमारे प्रति खराब
ग्रहों के कारण तो नी हुयी क्योंकि उन्हें बचपन से यही पता चला था कि हमारी
बहन के ग्रह हमारे लिए खराब हैं ।
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और इन दो भाइयों को यह
डर संताने लगा कि कहीं अब हमारी बारी तो नहीं है और इन दो भाइयों ने साथ
में विचार विमर्श किया और अपनी इस इकलोती बहन को मारने की साजिश रचने लगे
साथ में इनकी पत्नियों ने भी इन्हें यही करने की प्ररेणा दी कि वह अपनी बहन
को मारदें ।
ओर उन दोनों भाइयों ने वही किया, इन दो
भाइयों ने जब वह कन्या अर्थात माँ धारी केवल 13 साल की थी तो उनके दोनों
भाइयों ने उनका सिर उनके धड़ से अलग कर दिया ओर उनके मृत – शरीर को रातों
रात नदी के तट में प्रवाहित कर दिया।
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ओर इस कन्या का सिर
वहाँ से बहते – बहते कल्यासौड़ के धारी नामक गाँव तक आ पहुँचा, जब सुबह –
सुबह का वक्त था तो धारी गाँव में एक व्यक्ति नदी तट के किनारे पर कपड़े
धुल रहा था तो उन्होंने सोचा कि नदी में कोई लड़की बह रही है ।
उस
व्यक्ति ने कन्या को बचाना चाहा परन्तु उन्होंने यह सोचकर कि में वहाँ
जाऊँ तो जाऊँ कैसे, क्योंकि नदी में तो बहुत ही ज्यादा पानी था और वह इस
डर से घबरा गए कि में कहीं स्वंय ही न बह जाऊँ और उसका धैर्य टूट गया और
उसने सोच लिया कि में अब वह कन्या को नहीं बचायेगा।
परन्तु
अचानक एक आवाज नदी से उस कटे हुए सिर से आयी जिसने उस व्यक्ति का धैर्य
बढ़ा दिया, वह आवाज थी कि तू घबरा मत और तू मुझे यहाँ से बचा। और मैं तेरे
को यह आश्वासन दिलाती हूँ कि तू जहाँ जहाँ पैर रखेगा में वहाँ वहाँ पे तेरे
लिए सीढ़ी बना दूँगी, कहा जाता है कि कुछ समय पहले ये सीडिया यहाँ पर दिखाई
देती थीं ।
कहा जाता है कि जब वह व्यक्ति नदी में कन्या
को बचाने गया तो सच में अचानक एक चमत्कार हुआ, जहाँ जहाँ उस व्यक्ति ने
अपने पैर रखे वहाँ – वहाँ पर सीढ़ियाँ बनती गयी ।
जब
वह व्यक्ति नदी में गया तो उस व्यक्ति ने उस कटे हुये सिर को जब कन्या
समझ कर उठाया तो वह व्यक्ति अचानक से घबरा गया वह जिसे कन्या समझ रहा था वह
तो एक कट हुआ सिर है ।
फिर उस कटे हुए सिर से आवाज आई कि तू घबरा मत में देव रूप में हूँ और मुझे एक पवित्र, सुन्दर स्थान पर एक पत्थर पर स्थापित कर दे ।
ओर
उस व्यक्ति ने वही किया जो उस कटे हुए सिर ने उस व्यक्ति को बोला
क्योंकि उस व्यक्ति के लिए भी वह किसी चमत्कार से कम नहीं था कि एक कटा हुआ
सिर आवाज दे, उस व्यक्ति के लिए सीढ़ी बनाएं, एवं उसे रक्षा का आश्वासन दे,
यह सब देखकर वह व्यक्ति भी समझ गया कि यह एक देवी ही है।
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जब
उस व्यक्ति ने उस कटे हुए सिर को एक पत्थर पर स्थापित किया तो उस कटे हुए
सिर न अपने बारे में सब कुछ बताया कि मैं एक कन्या थी, जो कि सात भाइयों
की इकलौती बहन थी ओर मुझे मेरे दो भाइयों के द्वारा मारा दिया गया और यह
सब कुछ बताकर उस कटे हुए सिर ने एक पत्थर का रूप धारण कर लिया।
तब
से उस पत्थर की वहाँ पर पूजा अर्चना होने लगी और वहाँ पर एक सुन्दर धारी
देवी मंदिर बनाया गया था। और जो उस कन्या का धड़ वाला हिस्सा था वह
रुद्रप्रयाग के कालीमठ में माँ मैठाणी के नाम से प्रसिद्ध हुआ , यहाँ पर
भी माँ का भव्य मंदिर है और इस मंदिर को बदन वाला हिस्सा भी कहा जाता है ।
कालीमठ भारत में 108 शक्ति स्थलों में से एक है, धार्मिक परम्पराओं के अनुसार कालीमठ एक ऐसा स्थान है जहाँ देवी काली ने रक्तबीज नामक राक्षस को मारा था और उसके बाद देवी पृथ्वी के नीचे चली गयी थी। शक्तिपीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि जब कोई व्यक्ति भी यहाँ पर सच्चे मन से आता है तो उसकी
सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है ।
Dhari Devi Temple Mystery
माँ धारी देवी की एक कहानी के मुताबिक कहा जाता है कि माँ धारी देवी अपने मंदिर में एक दिन में अपने तीन रूप बदलती है जो निम्न हैं:-
प्रातकाल छोटी बच्ची ,दोपहर में युवती ,और शाम के समय व्रद्ध का रूप माँ धारी देवी लेती है ।
में आपदा आने का कारण
माना जाता है
कि जब रुद्रप्रयाग में स्थित केदारनाथ मंदिर के आसपास 16 जून 2013 को शांय
8बजे आयी आपदा ने मोत का तांडव रचा और सब कुछ तबाह हो गया केवल केदारनाथ
मंदिर को छोड़कर यह सब माँ धारी देवी के क्रोध से हुआ।
कहा
जाता है कि जब सरकार के आदेश के अनुसार जब 303 मेगावाट की जल विद्युत
परियोजना के लिए रास्ता बनवाने के लिए माँ धारी देवी को उनके मूल स्थान
से स्थानांतरित कर दिया गया था तो माँ को अत्यंत क्रोध आया जिससे कि
केदारनाथ के आसपास सबकुछ तबाह हो गया।
जबकि श्रद्धलुओं और वहाँ के स्थानीय लोगों से पूछ ताछ के दौरान पता चलता है कि आपदा आने के 2 घण्टे पूर्व मौसम सामान्य था ।
Dhari Devi Mandir Uttarakhand
कहा
जाता है कि एक स्थानीय राजा ने भी 1882 के दौरान माँ धारी देवी को उनके
मूल स्थान से हटाने की कोशिश की थी और उस समय भी केदारनाथ में भूस्खलन आया
था ।
पुजारियों के
अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापरयुग से ही स्थापित है । कहा
जाता है कि कालीमठ एवं कलिसियमठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा
में है और धारी देवी मंदिर में माँ काली की प्रतिमा शाँत मुद्रा में है।
Dhari Devi |
कहा जाता है कि महाकवि कालिदास को माँ काली की कृपा से यहीं जिन्न मिला था।
धारी देवी मंदिर की विशेषतायें
धारी देवी मंदिर में माँ धारी देवी अपने 3 रूप बदलती है। धारी
देवी मंदिर में नवरात्रों में विशेष पूजा आयोजित की जाती है । मंदिर में
प्रतिवर्ष चैत्र और शारदीय नवरात्री में हजारों श्रद्धालु अपनी
प्रार्थना को पूरी करने के लिए माँ के मंदिर में दूर – दूर से पँहुचते हैं।
धारी देवी मंदिर में ज्यादातर नवविवाहित जोड़े अपनी मनोकामना पूर्ण करने
हेतु माँ के मंदिर में पँहुचते हैं।
- माँ धारी देवी उत्तराखंड की रक्षक के रूप में भी जानी जाती है। माँ धारी देवी को माँ शक्ती के रूप महाकाली के रूप में पूजा जाता है।
- धारी देवी मंदिर में काली स्वरूप माँ धारी देवी की पूजा अर्चना धारी गाँव के पाण्डे ब्राह्मणों द्वारा की जाती है।
- माँ धारी देवी को जनकल्याणकरी होने के साथ दक्षिणी काली माँ भी कहा जाता है।
- नवरात्रों में यह मंदिर विशेष रूप से फूलों और लाइटों से सजाया जाता है।
धारी
देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के पोड़ी जिले में श्रीनगर गढ़वाल में अलकनंदा
नदी के तट पर श्रीनगर बद्रीनाथ राजमार्ग पर कल्यासोड़ में स्थित है।
यह मंदिर श्रीनगर गढ़वाल से लगभग 15 किलोमीटर,रुद्रप्रयाग से 20 किलोमीटर ओर दिल्ली से 360 किलोमीटर दूर है।
मुझे उम्मीद है कि Dhari Devi Temple के बारे में यह जानकारी आपको पसंद आयी होगी। यदि Dhari Devi Mandir के बारे में हमसे कोई जानकारी छूट गयी हो तो आप Comment में लिख सकते हैं इस वेबसाइट में आपको ऐसे ही और जानकारी देखने को मिलेगी । यदि आप किसी और चीज के बारे में जानना चाहते हैं तो COMMENT कीजिये हम जल्दी ही आपको वह जानकारी Provide करा देंगे।
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